Economic Policies के विरोध में 8 जनवरी को भारत बंद, बैंक यूनियनो का भी समर्थन ~ IPB

Economic Policies के विरोध में 8 जनवरी को भारत बंद, बैंक यूनियनो का भी समर्थन


Economic Policies के विरोध में 8 जनवरी को भारत बंद, बैंक यूनियनो का भी समर्थन
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मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के विरोध में देश के 10 केंद्रीय संगठनों ने 8 जनवरी को देशव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है. इस देशव्यापी बंद में कई बैंकिंग संगठन और 10 केंद्रीय व्यापार संगठन हिस्सेदारी ले रहें हैं. बैंकिंग सेक्टर में हड़ताल का बड़ा असर रहने की उम्मीद है. क्योंकि देश के बैंकर पहले ही अपने वेतन समझौते में देरी की वजह से सरकार से खासे खफा है. और बैंकिंग सेक्टर के हड़ताल में शामिल होने की वजह से काफी सेक्टरों का काम  प्रभावित होने की उम्मीद है.
वेतन समझौते पर प्रगति शून्य
देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ और मोदी सरकार की अधिकतर योजनाओं को धरातल पर उतारने वाले देश के 10 लाख सरकारी बैंकर पिछले 3 साल से अपने वेतन समझौते का इन्तजार कर रहें हैं. बैंककर्मी लगातार इसके लिए विभिन्न प्रकार से लगातार आंदोलन कर रहें हैं. इसी मुद्दे पर बैंक की यूनियन पिछले सालो में कई हड़ताल भी कर चुकी हैं. लेकिन अबतक सरकार की तरफ से इस मुद्दे पर कोई प्रगति नहीं हुई है. और ad-hoc वेतन के बाद अब इस मुद्दे पर जल्द कुछ होना संभव नहीं लग रहा है.
ad-hoc वेतन के जरिये सरकार ने कुछ हद तक बैंकरो के गुस्से को कम करने की कोशिश की थी. और लगातार डूबती GDP  को तात्कालिक बूस्ट देने के लिए भी सरकार के लिए भी यह जरुरी था. सरकार ने सिर्फ बैंकिंग सेक्टर ही नहीं बल्कि रेलवे सहित अन्य सेक्टरों को भी त्यौहारी सीजन में इस तरह से कुछ न कुछ अतिरिक्त कैश देने की कोशिश की थी. जिससे पिछले क़्वार्टर के शर्मनाक जीडीपी आकड़ो को कुछ सुधारा जा सके. और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर लगातार विफल होती सरकार को कुछ राहत मिल सके.

ग्रामीण बैंको की सबसे बड़ी यूनियन AIRRBEA का भी समर्थन।

आम तौर पर खुद को अलग रखने वाली ग्रामीण बैंको की सबसे बड़ी यूनियन अरेबिया (AIRRBEA) ने भी 8 जनवरी के भारत बंद को अपना समर्थन दिया है. इसलिए इस बार ग्रामीण बैंको में काम प्रभावित होने की उम्मीद है. अरेबिया (AIRRBEA) ने वाकायदा प्रपत्र जारी कर इस हड़ताल के साथ अपनी सॉलिडेरिटी पेश की है. अरेबिया (AIRRBEA) की सेंट्रल कमेटी की ओर से स्पष्ट किया गया है. की अरेबिया (AIRRBEA) की समस्त यूनिट 8 जनवरी की हड़ताल में हिस्सेदारी लेंगी।

प्रमुख माँगे

1- लेबर रिफॉर्म्स के प्रस्ताव को तत्काल वापस लिया जाए.
2- न्यूनतम वेतन 21000 रूपए से 24000 रूपए किया जाए.
3- तत्काल प्रभाव से सरकारी उपक्रमों के निजीकरण को रोका जाए.
4- CAA, NRC को वापस लिया जाए.

गौरतलब है सरकार ने लोकसभा में एक बिल प्रस्तावित किया है. जिसमे में मौजूदा 44 श्रम कानूनों को 4 कोड्स (44 labour laws into 4 codes) में बदलने का प्रस्ताव है. जो इस प्रकार हैं.
1- मजदूरी
2- इंडस्ट्रियल रिलेशन
3- सामाजिक सुरक्षा
4- सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियाँ

   मीडिया में आयी खबरों के अनुसार नया कानून लेबर के हकों में कटौती करता है. और नियोक्ता को ज्यादा अधिकार देता है. इस बिल के पास होने के बाद नियोक्ता को अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालने में ज्यादा आसानी होगी।

सामाजिक सुरक्षा के लिए इस श्रम कोड में असंगठित क्षेत्र के 93% वर्कफोर्स को इसमें शामिल नहीं किया गया है.

इस कोड में हड़ताल को सामूहिक आकस्मिक अवकाश के रूप में परिभाषित किया गया है. और किसी भी यूनियन को तभी मान्यता दी जायेगी जब 75 % से अधिक कमर्चारियों का उसे समर्थन हासिल हो.
कुल मिलाकर इस कानून में कंपनियों के लिए वो सबकुछ है, जो वो हमेशा से चाहती आयी हैं. और कर्मचारियों को अबतक जो हक़ प्राप्त थे वो काफी काम होने वाले हैं.
सरकार का उदासीन रवैया

जब से मोदी सरकार सत्ता में आयी है, एक एक करके सभी सरकारी संस्थान इसके निशाने पर हैं. दरअसल सरकार ने फ्री धन बांटने की बहुत सारी योजनाएं चला रखी हैं. जिसके लिए सरकार को बहुत सारे पैसो की जरूरत है. सरकार पहले ही RBI से 1.76 लाख करोड़ रूपये उसके हलक में हाथ डालकर निकाल चुकी है. अब सरकार के पास इन फ्री योजनाओं को जारी रखने के लिए धन नहीं हैं. और इन्हे बंद करने से लोगो की नाराजगी और बढ़ सकती है जिससे वोट बैंक को भरी खतरा हो सकता है. सरकार पहले ही बेरोजगारी और महंगाई के मोर्चे पर विफल साबित हो रही है. देश की अर्थव्यवस्था भी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में सरकार के पास सिमित संसाधन ही शेष बचे हैं. उन्हीं में से एक है सरकारी संस्थानों को बेचकर अपनी फ्री वाली योजनाओं के लिए धन जुटाना। सरकार ने एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस को बेचने का ऐलान हाल ही में किया है. सरकार IDBI बैंक को भी बेच चुकी है. कई बैंको का मर्जर कर चुकी है. जिससे रोजगार के ऑप्शन अब पहले से और कम हो गए हैं. रेलवे में निजीकरण की शुरुआत से सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर और घटने वाले हैं. इसीलिए देश के सभी सरकारी और PSU संस्थानों के कर्मचारियों में गुस्सा है. और इसी गुस्से का नतीजा है यह हड़ताल।

सरकार ने देश के सरकारी कर्मचारियों की एकदम से अनदेखी शुरू कर दी है. जहाँ बैंकर्स का वेतन समझौता पिछले 3 साल से लंबित है. वहीं सरकारी कर्मचारियों की पेंशन की मांग को  सरकार ने अनदेखा कर  रखा है. यह सब चीजें सरकारी कर्मचारियों के प्रति सरकार के नकारात्मक रवैये को दर्शाती हैं.

मोदी सरकार के लिए चुनौती


लगातार सरकारी कमर्चारियों की अनदेखी करने वाली मोदी सरकार के लिए अब यह सरकारी कर्मचारी मुसीबत बनने लगे हैं. आये दिन सरकार को हड़ताल से रूबरू होना पड़ रहा है. जहाँ एक तरफ देश के 10 लाख बैंकर 2017 से पेंडिंग पड़े अपने वेतन समझौते की वजह से सरकार से खासे नाराज़ हैं. और बैंक जल्द ही एक बड़ी हड़ताल का एलान करने वाले हैं. ऐसी उम्मीद है अब बैंकर्स अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान कर सकतें हैं. क्योंकि देश के बैंकर  1-2 दिन की हड़ताल कई बार कर चुके हैं. लेकिन अबतक नतीजा शून्य है.

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