PSU Bank vs Private Bank- NPA और PSU Banks के निजीकरण की साजिश
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www.indianpsubank.in:- जब से मोदी सरकार (Modi Govt.) सत्ता में आयी है. देश की अर्थव्यवस्था (Economy) के बुरे दिन शुरू हो गये.. 2014 में नोटबंदी (Notebandi) की विफलता के बाद सरकार ने सरकारी बैंको (PSU Banks) को दोष देने की औपचारिक शुरुआत कर दी. जिन सरकारी बैंकर्स (PSU Bankers) ने रात के 11-11 बजे तक काम करके अपनी जान की बाजी लगाकर नोटबंदी (Notebandi) को सफल बनाने की कोशिश की. उन्हीं सरकारी बैंकर्स को नोटबंदी (Notebandi) की विफलता के लिए जिम्मेदार ठहराया गया. जबकि तमाम सरकारी निगरानी और जाँचो के बाद भी सरकारी बैंको (PSU Banks) द्वारा नोटबंदी (Notebandi) के दौरान कोई घोटाला सामने नहीं आया. वहीँ दूसरी तरफ प्राइवेट बैंको (Private Banks) की पूरी की पूरी ब्रांच बाकायदा घोटालो में संलिप्त पायी गयी. लेकिन फिर भी उनपर किसी ने ऊँगली नहीं उठायी। वजह साफ़ है सरकार Private Banks की छवि ख़राब नहीं करना चाहती। जबकि सरकारी बैंको (PSU Banks) को बदनाम करके अपनी गलत नीतियों की जिम्मेदारी से बच निकलना एक आसान तरीका है.
NPA, PSU Bank और सरकार
अभी हाल के आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने NPA को लेकर अपनी पीठ थपथपाई है. लेकिन उसके बाद भी बैंकर्स का वेतन समझौता नवंबर 2017 से पेंडिंग है.
खैर NPA पर भी सरकार ने आपको जो तस्वीर दिखाई है. वो अधूरी व् सेलेक्टिव है. आपको बता दें, NPA भी मोदी सरकार आने के बाद बहुत तेज़ी से बढ़ा है. उसमे भी 2014 के बाद बहुत तेज़ी से बढ़ोतरी हुई.
सरकारी बैंको का जो NPA साल मार्च 2014 में 4.4 प्रतिशत पर था. वो मार्च 2018 में 11.5 प्रतिशत के खतरनाक स्तर पर पहुँच गया. जिसके बाद सरकार ने सरकारी बैंको के डूबने का माहौल बनाना शुरू कर दिया। और इसके लिए 2014 से पहले कांग्रेस की सरकार और बैंकर्स के द्वारा गलत तरीके से लोन बाँटने को जिम्मेदार ठहराया।
नतीजा यह हुआ सरकार ने एक सरकारी बैंक IDBI BANK को प्राइवेट हाथों में बेच दिया। और आम जनता से लेकर मीडिया विपक्ष किसी ने इसके लिए आवाज नहीं उठायी। कुछ यूनियन ने जरूर विरोध किया। लेकिन उनके विरोध को वामपंथ से प्रेरित बताकर इग्नोर कर दिया गया. इसी बीच सरकार ने BOB, DENA BANK और VIKAYA BANK का विलय कर दिया। लेकिन यूनियन एकबार फिर बस बेबस नज़र आयी.
अब जब 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण में NPA में मामूली गिरावट हुई है. तो सरकार ने अपनी पीठ थपथपानी शुरू कर दी. मतलब जब नोटबंदी (Notebandi) फेल हुई, जब NPA रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा तब बैंकर और पिछली सरकारें जिम्मेदार थी. लेकिन अगर वही बैंक वाले कुछ मेहनत करके आपको संसद में कुछ बोलने का मौका दें. तो आपको अपने भाषण में उनका नाम लेने में भी शर्म आती है. और जब उनके वेतन समझौते की बात आती तब आप उनको 2% की बढ़ोतरी का ऑफर देकर उनको बेइज्जत करने का काम करते हैं.
सरकारी बैंको के काम में सरकारी व्यवधान
हमारे एक मित्र राम शंकर जी ने हाल ही में एक मीटिंग का ज़िक्र करते हुए एक आर्टिकल लिखा, जिसका कुछ हिस्सा यह हूबहू मै लिख रहा हूँ.
"कुछ दिन पहले मई अपनी शाखा की तरफ से BDO साहब के दफ्तर में विभिन्न सरकारी योजनाओं की समीक्षा के लिए गया था. BDO साहब आक्रोश और आक्रमण की मुद्रा में थे. क्योकि जिले के सरकारी बैंक SHG, KCC और अन्य समाज कल्याण के टारगेट पुरे नहीं कर पाए थे. दबी आवाज में सरकारी बैंकर इसे पूरा करने का सिग्नल दे रहे थे. उल्लेखनीय ये है की 20 -25 की संख्या में आये सभी बैंकर्स अलग-अलग सरकारी/राष्ट्रीयकृत बैंकों से ही थे और उनमे से एक भी प्राइवेट बैंक का नहीं था। अपने आदत के अनुरूप में मैंने तपाक से पुछ लिया की कोई प्राइवेट बैंक के प्रतिनिधि स्टाफ यहाँ क्यूँ नहीं आया ? उन्हें बुलावा नही भेजा गया या? या वो कभी ऐसे मीटिंग में आते ही नहीं ? BDO साब मुझे ऐसे देखने लगे मानो मैंने उनसे आकाश में निश्चत तारों की संख्या पूछ ली हो .....छत पे लटके पंखे को बेमतलब निहारने के बाद वो कहते हैं इ सब मीटिंग में तो सरकारी बैंक ही आता है. हमने कहा क्यूँ प्राइवेट क्यूँ नहीं. 40% प्राथमिक क्षेत्र को ऋण देने का ठेका RBI और भारत सरकार ने प्राइवेट और सरकारी सब को बराबर –बराबर बाँटा है . फिर ऐसा भेदभाव क्यों ? BDO साहब के पास इस बात का कोई सटीक जवाब नहीं था. इस एक छोटे मगर रियल उदहारण ने सरकारी बैंक और प्राइवेट बैंक के बेसिक फोकस के अंतर का चरित्र चित्रण कर दिया था
तो क्या माहौल बनाने के लिए रची साजिश
दरअसल सरकार किसी भी तरह से हर सेक्टर में निजीकरण (PRIVATIZATION) की बढ़ावा देना चाहती है. लेकिन बैंकिंग सेक्टर (BANKING SECTOR) एक ऐसा सेक्टर जो सीधे तौर पर देश की जनता से जुड़ा हुआ है. इसलिए सरकार अगर सीधे इसे प्राइवेट करती है. तो सरकार को अपनी कॉर्पोरेट प्रेमी छवि के बाहर आने का खतरा है. इसलिए सरकार ने पहले जानबूझकर PSU BANKS को बदनाम करने की साजिश की. जिससे आम जनता के बीच सरकारी बैंको को कॉर्पोरेट के हाथों में देने के लिए माहौल बनाया जा सके.
हाल के विजय माल्या और नीरव मोदी काण्ड के उपरांत सरकारी बैंकों (PSU BANKS) को एक साजिश के तहत सुनियोजित तरीके से प्राइवेट बनाने के लिए देश में माहोल बनाया जा रहा है। इंग्लिश मीडियम विद्वानों और कॉर्पोरेट्स लवर्स ने PSU BANKS को पूंजीपतियों के हाथो बेचने की वकालत की है. दुर्भाग्यपूर्ण ये है की इस खेल में सत्ता पक्ष के लोग भी पीछे से बैटिंग कर रहे हैं..
.वो भी ......
• यह जानते हुए भी की 1947 से 1969 के मध्य लगभग 736 या इससे अधिक Private Bank खुले और कुछ सालो में ही बंद हो गये. जिसमे लाखों-करोड़ो की संख्या में सीधे-साधे लोग हमेशा के लिए बर्बाद हो गये / हाल में सहारा और शारदा आम जनता की ऐसी ही तबाही के ज्वलंत उदहारण बने है /
• यह जानते हुए भी की PSU Bank को लुटने वाले 90 से अधिक फीसदी लोग प्राइवेट/निजी और पूंजीपति लोग ही है /
• यह जानते हुए की जहाँ PSU Bank 100 –500 में खाता खोल देती है वही खाता Private Bank, 5000-10000 में खोलती है/
• यह जानते हुए भी की आम गरीब आदमी प्राइवेट बैंक (Private Bank) में जाने की साहस तक नहीं जुटा पाता और सारा समाजवाद का भीड़ राष्ट्रीयकृत बैंक (Nationalized) की तरफ जाता है. जबकि प्राइवेट बैंक (Private Bank) भीड़ की बैंकिंग (Mass Banking) नहीं करता बल्कि वो क्रीम की बैंकिंग (Class Banking) करता है , उनके लिए पूंजीवाद और दौलतवाद ही उनके प्रमुख आदर्श है और ये इस देश का हर समझदार नागरिक यह बात को बखूबी जानता है.
• यह जानते हुए भी की सरकार की सारी योजना चाहे वो वोट आधारित हो चाहे जनकल्याण आधारित इसे लाभ -हानि से परे सरकारी बैंक (PSU Bank) ही क्रियान्वित करती है.
• यह जानते हुए भी की नोटबंदी (Notebandi) में हेराफेरी और फरेब का 99 फीसदी खेल निजी बैंकों (Private Banks) के बंटी- बबली और ओवर स्मार्ट पूंजीपतियों ने किया।
• यह जानते हुए की कॉर्पोरेटस के बड़े NPA की रिकवरी बिना सरकार के सहयोग में संभव नहीं ....
• यह जानते हुए की पुलिस , सेना, लड़ाकू विमान, टैंक, परमाणु बम , बड़े बड़े बन्दुक और हथगोले ...इनमे से कुछ भी बैंकों के अधीन नहीं ...बल्कि ये सब भारत सरकार के अंतगर्त है.
• यह जानते हुए भी की वसूली के नए कड़े कानून बनाना बैंकर के हाथ नहीं बल्कि स्वयं उनके हाथ में है.
• यह जानते हुए भी की सरकारी बैंकों (PSU Banks) में स्टाफ की भारी किल्लत है ..नए स्टाफ बहाली नहीं करेंगे मगर हर झंडोतोलन दिवस पर सौ तरह की योजनाओ का एलान जरुर करेंगे .क्यूंकि बेचारे गुलाम बैंकर उनके खटाल में बंधे तो है हीं.
• आधार कार्ड बनाने का काम किसी भी दृष्टिकोण से से बैंकिंग (Banking) से जुड़ा नहीं है फिर भी इसे बैंकर पर लादेंगे. क्यूंकि बैंकर तो निरीह गधे है जो भी लाद दो सुसाइड करने तक भी खींचेंगे.
• यह जानते हुए भी की शिक्षा और चिकित्सा जब से निजी हाथो में गयी है लोग कंगाल हो रहे है.
जहाँ लोग सरकारी संस्थानों में कुछ हज़ार मात्र देकर कॉलेज कम्पलीट कर लेते हैं वहीँ कुछ लोग प्राइवेट स्कूल में लाखो खर्च कर भी अपने बच्चे की नर्सरी तक कम्पलीट नहीं करवा पाते.
प्राइवेट चिकित्सा का आलम तो सबको पता है जहाँ खुजली से सामान्य बुखार तक का इलाज भी कई लाख का बिल फड़वा देती है. ठीक उसी तरह सरकारी बैंक भी प्राइवेट बैंक से बिलकुल अलग है.
सरकारी बैंक (PSU Bank) जहाँ जीरो बैलेंस अकाउंट, ओल्ड एज्ड पेंशन , KCC , SHG ,VSKP और अनेक असंख्य भीड़ के सैलाब वाले कामो में जहाँ खुद को बेबस और फंसी पाती है वहीँ प्राइवेट बैंक (Private Bank) पूरी आजादी से प्रोफेशनलिज्म बेस्ड प्रॉफिट का धंधा करती है. समाज कल्याण और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वन में इनमे वही अंतर है जो आसमान और जमीन में होता है. सबसे खास मगर महत्वपूर्ण बात की सरकारी बैंकों में बढ़ते बेतहाशा भीड़ की वजह से मालदार कस्टमर प्राइवेट बैंक (Private Bank) की तरफ रुख कर जाते है जबकि अधिक चार्ज/शुल्क की वजह से गरीब या आम ग्राहक उसी सरकारी बैंक (PSU Bank) के भीड़ का हिस्सा बने रहते हैं. सरकार राष्ट्रीयकृत बैंकों (Nationalized Banks) पर दोतरफा ऋण बाँटने का दवाब बनाती रहती है एक वोट के लिए (गरीबों) तो दूसरा नोट के लिए (कोर्पोरट्स ) और बीच में घिसता रहता है बेचारा PSU बैंकर्स / बैंक लाभ नहीं करेगा तो सैलरी नहीं बढेगा मगर नोट और वोट के चक्कर में सत्य यही है की कभी लाभ भी नहीं होगा.
विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लुटेरों को पकड़ना सरकार के बायीं हाथ क खेल
विजय माल्या (Vijay Malya) और नीरव मोदी (Nirav Modi)जैसे लुटेरों को पकड़ना सरकार के बायीं हाथ क खेल है. मगर जानबूझकर पकड़ते नहीं बल्कि पकड़ने की कोशिशों की एक्टिंग करते रहते हैं. क्यूंकि पकड़ने से उनके खेल का भांडा फुट जाएगा. अंत में इतना ही कहूँगा की अगर ईमान और इच्छा शक्ति हो तो आप चाँद और मंगल पर भी जा सकते है और नहीं तो इन बैंक के लुटेरों को पकड़ने लन्दन और अमेरिका भी नहीं.
रामशंकर सिंह
(Banker)
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