नजरिया- उधार के प्रबन्धन से चलते Gramin Bank, कैसे सुधरे व्यवस्था- रोहित गंगवार

उधार के प्रबन्धन से चलते Gramin Bank, कैसे सुधरे व्यवस्था

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भारत में ग्रामीण बैंको (RRBs) की शुरुआत साल 1975 में तत्कालीन इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा की गयी थी, तब इनका उद्देश्य देश के ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब, वंचित, शोषित वर्ग को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ना था, एकसमय इनकी संख्या 196 तक चली गयी थी. लेकिन वर्तमान में देश में सिर्फ 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) बचे हैं, जो देश के 685 जिलों में काम कर रहें हैं. इनके कमर्चारियों की संख्या लगभग 92000 है. लगातार बाज़ारीकरण के दौर में आज यह बैंक अपने मूल उद्देश्य से काफी आगे निकल चुके हैं. आज इनका उद्देश्य भी अन्य बैंको की तरह ही किसी भी हाल में अधिक से अधिक मुनाफा कमाना है. 01-04-2021 के नाबार्ड द्वारा जारी आंकड़ों के हिसाब से अगर देश के सभी ग्रामीण बैंको (RRBs) को मिलाकर एक बड़ा ग्रामीण बैंक (Gramin Bank) बनाया जाए तो यह देश के 10 सबसे बड़े बैंको में सुमार होगा। इसका कुल व्यवसाय लग्भग 8लाख 60 हज़ार करोड़ होगा। लेकिन फिर भी इन बैंको का हाल बुरा है, इनमे काम करने वाले कर्मचारी अक्सर प्रायोजक बैंक (Sponsors Bank) के अधिकारियों की भेदभाव की नीतियों का शिकार होते हैं. प्रायोजक बैंक (Sponsors Bank) द्वारा इन ग्रामीण बैंको (RRBs) को आज सरकारी आँकड़े जुटाने की मशीन समझा जाने लगा है.

-रोहित गंगवार

कार्यकारी महामंत्री

बड़ौदा यूपी बैंक एम्प्लॉयेज़ यूनियन 

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दुर्दशा की सबसे बड़ी वजह- उधार का प्रबंधन

देश की सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको (Regional Rural Banks) का प्रबंधन 35% हिस्सेदारी रखने वाली प्रायोजक बैंक (Sponsors Bank)  से उधार भेजा जाता है. यह अधिकारी कुछ साल (अधिकतम 5 साल) के लिए ग्रामीण बैंको (RRBs) में भेजे जातें हैं. ऐसे में इन अधिकारियों के पास सम्बंधित ग्रामीण बैंक (RRB) के लिए कोई भी लॉन्ग टर्म विज़न (Long Term Vision) नहीं होता। यह ऐसी नीतियों पर काम करतें हैं  जिससे तत्काल रिजल्ट निकल कर आएं. इन अधिकारियों द्वारा चीजों के स्थायी समाधान की जगह हमेशा टेम्पररी समाधान को वरीयता दी जाती है. इंफ्रास्ट्रक्चर, शाखा विस्तार और हद तो तब हो जाती जब डिजिटल बैंकिंग (Digital Banking) जैसे महत्वपूर्ण विषय में इन्वेस्टमेंट में भी इन अधिकारियों द्वारा उदासीन रवैया अपनाया जाता है.  क्योंकि जहाँ तरफ डिजिटल बैंकिंग में एक हैंडसम अमाउंट इन्वेस्ट करना पड़ता, वहीं दूसरी तरफ इससे तात्कालिक फायदे भी नज़र नही आते। लेकिन शायद नीति निर्माताओं को यह समझ नही आता वो डिजिटल बैंकिंग को इग्नोर कर ग्राहकों की एक पूरी पीढ़ी को खो रहें हैं। जिनकी कुल जनसंख्या में हिस्सेदारी 70% है, और उनकी उम्र अभी 35 साल से भी कम है। 

 इनका उद्देश्य ग्रामीण बैंको (RRBs) के कर्मचारियों को आँकड़ा मशीन बनाकर कागजी आकड़ें सुधारने पर ज्यादा रहता है. इनके पास जो एक्सपीरियंस होता है वो प्रायोजक बैंक (Sponsors Bank) में काम करने का होता है. जबकि प्रायोजक बैंक (Sponsors Bank) और ग्रामीण बैंको (Regional Rural Banks) के काम करने का तरीका, माहौल और संसाधन एकदम अलग है. ऐसे में इन अधिकारियों के पास ग्रामीण बैंको (Regional Rural Banks) के लिए विज़न की कमी साफ़ दिखती है. जिसका खामियाजा ग्रामीण बैंको को उठाना पड़ता है।

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नीतियां बनाने वाले ऐसे, जिन्हें ग्रामीण बैंको की कोई समझ नही।

इंस्टिट्यूट ऑफ़ बैंकिंग एन्ड पर्सनल सिलेक्शन (IBPS) ग्रामीण बैंको (Regional Rural Banks) के लिए सीधे स्केल 3 के अधिकारियों (Scale 3 Officers) की भर्ती करता है. ग्रामीण बैंको (RRBs) में सीधे स्केल 3 अधिकारी (Scale 3 Officer) बनने के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक, बैंकिंग कंपनी या किसी वित्तीय संस्थान में कम से कम 5 साल अनुभव अनिवार्य है. लेकिन अगर कोई अधिकारी देश की किसी ग्रामीण बैंक (RRB) में सीधे Scale 3 भर्ती होता है. तो वह सिर्फ 2 प्रमोशन और ले सकता है. मतलब ग्रामीण बैंक (Gramin Bank) में सीधे Scale 3 ज्वाइन करने वाला भी ग्रामीण बैंक (Gramin Bank) में कभी GM या चेयरमैन (Chairman) नहीं बन सकता। जबकि राष्ट्रीयकृत बैंक में Scale 1 का अधिकारी आगे चलकर हमारे Scale 3 अधिकारी को रूल कर सकता है. इससे जिनके पास ग्रामीण बैंक में काम करने का असली अनुभव और समझ है वो कभी भी डिसिजन मेकिंग बॉडी में नही पहुँच पाते। जिससे ग्रामीण बैंको की नीतियां जमीनी ना होकर सतही ज्यादा नज़र आती हैं।

ऐसा क्यों हैं

ऐसा इसलिए है क्योकि ग्रामीण बैंक (Gramin Bank) के किसी भी कर्मचारी को Scale 5 से ऊपर जाने के काबिल ही नहीं समझा जाता। आप चाहें जितने ही काबिल क्यों ना हो Gramin Bank में GM या चेयरमैन कभी नहीं बन सकते। एक ऐसा आदमी जिसे Gramin Bank के बारें में कोई जानकारी ही नहीं, ना ही उसके पास Gramin Bank का कोई अनुभव है, वो Gramin Bank का मुस्तकबिल तय करता है. उसकी नीतियां तय करता है. उसके कर्मचारियों का और बैंक का भविष्य तय करता है. अपना मैनजमेंट ना होने के कारण जमीन पर ग्रामीण बैंको के लिए काम करने वाले कर्मचारी हमेशा तनाव में रहतें हैं जिससे उनके कार्य करने की क्षमता प्रभावित होती है। 

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डिजिटल दौड़ में पिछड़ते Gramin Bank- ग्राहकों की एक पूरी पीढ़ी खो रहे Gramin Bank

The Internet and Mobile Association of India's (IAMAI) की रिपोर्ट के मुताबिक आज देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालो की संख्या 50 करोड़ हो चुकी है. देश की 70% आबादी 35 साल से कम उम्र की है. जो लगातार कैश- लेस ट्रांसेक्शन (Cash Less Transaction) को वरीयता दे रही है. लेकिन देश की अधिकतर ग्रामीण बैंको के पास देश की इस पढ़ी लिखी 70% आबादी को डिजिटल बैंकिंग सुविधाओं के नाम पर देने के लिए कुछ नहीं है. कई कई ग्रामीण बैंको में Ready To Use ATM Kit के ज़माने में एटीएम (ATM) जैसी बेसिक चीजों के लिए भी महीनों इन्तजार करना पड़ता है. वहीं अगर इंटरनेट बैंकिंग (Internet Banking) या मोबाइल बैंकिंग (Mobile Banking) की बात करें तो कई बैंको की इंटरनेट बैंकिंग (Internet Banking) तो महीनों तक थप रहती है. रिक्वेस्ट डालने के महीनों बाद तक यूजर ID और पॉसवर्ड नहीं आते. और मोबाइल बैंकिंग (Mobile Banking) में कुछ एक काम के अलाबा आप कुछ नहीं कर सकते। मोबाइल बैंकिंग (Mobile Banking) का MPIN भूल गए तो फिर बिना बैंक जाए उसे रिसेट नहीं किया जा सकता। ऐसे में Gramin Bank ग्राहकों की एक पूरी पीढ़ी को हमेशा के लिए खो रहें हैं.

क्या है वजह

दरअसल ग्रामीण बैंक (Gramin Bank) डिजिटल बैंकिंग (Digital Banking) में निवेश को वरीयता ही नहीं देते। ना ही बैंको के सॉफ्टवेयर अपडेट करने के काम को वरीयता दी जाती है. ऐसा शायद इसलिए होता है क्योंकि यहाँ जिनके पास इन सब कामों की जिम्मेदारी होती उन्हें पता होता है की उन्हें 5 साल बाद यहां नहीं रहना है. और आज से 10 साल या 20 साल बाद बैंक किस हाल में होगा उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ने वाला। यह स्थितियाँ बदल सकती है अगर ग्रामीण बैंको (RRBs) की कमान यहाँ के लोगो के हाथों सौपी जाए.

छोटे पदों पर भी Sponsors Bank के अधिकारियों का बोलवाला

ऐसा नहीं है की ग्रामीण बैंक (Gramin Bank) में सिर्फ GM या चेयरमैन जैसे पदों पर ही प्रायोजक बैंक (Sponsors Bank) से अधिकारी उधार भेजे जातें हैं. क्षेत्रीय प्रबंधक (Regional Managers) जैसे पदों पर भी प्रायोजक बैंको (Sponsors Bank)  के अधिकारियों का बोलवाला रहता है. ग्रामीण बैंक (Gramin Bank) के जो अधिकारी Scale 4 या Scale 5 बनते भी हैं उन्हें भी कहीं साइड में लगा दिया जाता है. या फिर इसे सरल भांषा में कहें तो उन्हें जिम्मेदारी ही नहीं दी जाती। जबकि इनके पास ग्रामीण बैंको (RRBs) के लिए उन तथाकथित उधार के अधिकारियों से कहीं अच्छा विज़न और अनुभव होता है. लेकिन शायद प्रायोजक के अधिकारियों की नज़र में ग्रामीण बैंक में कोई भी प्रबधंन चलाने लायक समझा ही नहीं जाता।

अरेबिया की मांग- NRBI

ग्रामीण बैंको की सबसे बड़ी यूनियन अरेबिया लगातार इस लड़ाई को लड़ रही है. और यह अरेबिया की लड़ाई का ही नतीजा है जो आज ग्रामीण बैंक कर्मियों को पहले स्केल4 और फिर स्केल 5 तक के प्रमोशन का हक़ दिलवाया। लेकिन अरेबिया के नेता भी जानते हैं जब तक अखिल भारतीय स्तर पर एक स्वतंत्र ग्रामीण बैंक नहीं बनता, ग्रामीण बैंको और उसके कर्मचारियों की हालत में कोई सुधार नहीं होने वाला। अरेबिया की डिमांड पर ही सरकार ने ग्रामीण बैंको के चरणबद्ध समामेलन की नीति पर काम किया।  और चरणबद्ध तरीके से एकसमय 196 ग्रामीण बैंको की संख्या को 43 तक लाया जा सका. लेकिन समामेलन की यह रफ़्तार ग्रामीण बैंको के युवा कर्मियों की उम्मीदों की रफ़्तार से कहीं धीमी है. कुछ समय पूर्व ग्रामीण बैंको के साथ इंडिया पोस्ट के विलय की खबरें भी आयी थी. लेकिन 18000 करोड़ घाटे वाले इंडिया पोस्ट के साथ अगर ग्रामीण बैंको का विलय हो जाए तो शायद इन बैंको का अस्तित्व एकबार में ही हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। फ़िलहाल एक बात तो साफ़ है जबतक ग्रामीण बैंको को प्रायोजक बैंको की गुलामी से बाहर नहीं निकाला जाता इन बैंको की हालत में सुधार की गुंजाइश कम ही है.

इस लेख में लेखक में अपना व्यक्तिगत नराजिया पेश किया है. कई लोगो के विचार एक लेख से अलग हो सकतें हैं.

 

-लेखक

रोहित गंगवार

कार्यकारी महामंत्री

बड़ौदा यूपी बैंक एम्प्लॉयेज़ यूनियन 

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